हक़ीक़त ना सही तुम ख़्वाब बन कर मिला करो,
भटके मुसाफिर को चांदनी रात बनकर मिला करो।
कभी लफ्ज़ भूल जाऊं कभी बात भूल जाऊं,
तूझे इस कदर चाहूँ कि अपनी जात भूल जाऊं,
कभी उठ के तेरे पास से जो मैं चल दूँ,
जाते हुए खुद को तेरे पास भूल जाऊं।
मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले,
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझको।
अल्फाज़ की शक्ल में एहसास लिखा जाता है,
यहाँ पर पानी को प्यास लिखा जाता है,
मेरे जज़्बात वाकिफ से है मेरी कलम भी,
प्यार लिखूं तो तेरा नाम लिखा जाता है।
तुम नहीं होते हो तो बहुत खलता है,
प्यार कितना है तुमसे पता चलता है।
उदास लम्हों की न कोई याद रखना,
तूफान में भी वजूद अपना संभाल रखना,
किसी की ज़िंदगी की ख़ुशी हो तुम,
बस यही सोच तुम अपना ख्याल रखना।
आँखों में आँखें डालकर तुम्हारा दीदार,
ये कशिश बयाँ करना मेरे बस की बात नही।
एक शब गुजरी थी तेरे गेसुओं के छाँव में,
उम्र भर बेख्वाबियाँ मेरा मुकद्दर हो गयीं।
मेरे वजूद में काश तू उतर जाए,
मैं देखूं आइना और तू नजर आये,
तू हो सामने और वक्त ठहर जाए,
और तुझे देखते हुए जिंदगी गुज़र जाए।